कहने के लिये कुछ भी उल्लेखनीय नहीं है इन १०० दिनों में सरकार का लेखा जोखा परखने का , सिवाय इसके कि इस देश की जनता का वाकई दिल गुर्दा इतना मजबूत है कि इसे जितना भी सताओ यह कुछ बोलने वाली नहीं । सभी तरफ़ लूट खसोट का बज़ार गरम है अखबार इनसे भरे पड़े हैं लेकिन इस देश की जनता मूक दर्शक बनी हुयी कान मे तेल दाले पड़ी हुयी बैठी है ।
यह बदलना भी नहीं चहती है । देश की जनता स्वयम चाहती है कि लूटने वाले उसे चाहे जितना लूटे वे आवाज़ तक नहीं उठायेंगे ।
नेता जानते हैं कि जनता दो तरीके से गरीब है एक सोचने का मद्दा नहीं है इसलिये दिमाग से गरीब है दूसरे इतना पैसा नहीं है कि आराम से खा पी सकें और सुकून से जीवन बिता सकें यानी पैसे और धन से भी गरीब हैं ।
फिर क्यों न इस देश के नेता इस कमजोरी का फायदा उठायें और जनता को हर जगह उल्लू बनायें ?