bhaaratiy sansad

सन्सद के ६० साल और भारतीय लोक तन्त्र

इस समय जब यह पोस्ट लिख रहा हूं, मेरे इलाके की बिजली गायब है / गर्मी इस कदर है कि अगर पन्खा इन्वर्टर से न चलाउं तो ठीक से लिख पढ भी नही सकता / भारतीय सन्सद के आज साठ साल पूरे हो चुके हैं / यह भले ही मौजूदा सान्सदों के लिये एक सुखद घटना-अवसर हो सकता है लेकिन भारत के लोगों के लिये सन्सद के साठ साल में कोई खास उपलब्धि मिली हो. ऐसा ईमान्दारी से यदि मुझे कहना पड़े तो मेरा उत्तर नकारात्मक ही होगा / पिछले साठ साल मे सन्सद की कोई खास उपलब्धि हो, मै अगर बहुत ईमान दारी से याद करता हू तो सिवाय एक या दो ही उपलब्धियां नजर आती है /

बाकी उपलब्धियां देश हित या विश्व राजनीति के मद्दे नजर अगर कोई कहता है तो यह सिवाय पार्टीगत या राजनीति गत ही कही जा सकती है, जो सीधे सीधे वोट बैन्क से जाकर जुड़ जाती है /

एक उपलब्धि मै सबको याद दिलाये देता हूं / जब इन्दिरा गान्धी इलाहाबाद की अदालत से कदाचार के आरोप मे दन्डित की गयी तो बाद में तत्कालीन इन्दिरा गान्धी के नेत्रत्व वाली सरकार द्वारा इमर्जेन्सी इस देश के लोगों पर ठोंक दी गयी थी / सन्सद का कार्यकाल पांच साल से बढाकर छह साल कर दिया गया था / जब जनता पार्टी की मोरार जी देसाई के नेत्रत्व वाली सरकार आयी तो उसने अमेन्ड्मेन्ट करके पुन: पान्च साल का प्रावधान किया और साथ ही एमरजेन्सी के प्रावधान को बदल कर जब तक दो तिहाई बहुमत न हो तब तक लागू करने के नियम को प्रतिपादित किया ताकि कोई भी प्रधान मन्त्री आगे से अपने फायदे के लिये इमरजेन्सी का दुरुप्योग न कर सके / यह सब जन हित और भारतीय लोक तन्त्र को बचाने के लिये किया गया ईमान्दारी से परिपूर्ण कार्य था /

सबसे बड़ी कमी हमारे भारतीय संविधान में है / अगर आप सम्विधान को पढें तो इसमें कमी लगती है / मेरे observation मे कुछ बातें है ;
१- यह “अस्पष्ट” है
२- यह “बिखरा हुआ ” scattered है
३- यह “जिम्मेदारी से रहित ” है
४- यह “Controversial” है
५- यह “जवाब देही नही तय करता” है

जब अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने सम्विधान की व्याख्या के लिये प्रसिध्ध सम्विधान विशेष्ग्य श्री सुभाष कश्यप की अगुयायी में सम्विधान-समीक्षा के लिये समिति बनायी गयी तो उसका कोई अन्तिम निष्कर्ष या नतीजा नही निकला / अन्दर खाने की बात क्या हो सकती है , यह केवल उस समय की गयी बयान बाजी से अन्दाज कर सकते हैं / ऊपर कही गयी पान्च बातें उभर कर सामने आती है और शायद इसी कारण इस समिति ने चुप रहना ही बेहतर समझा होगा /

कई बार दिल्ली के किसी मन्त्रालय की building से खड़े होकर जब मै अपने गांव देहात के खेत और खलिहान की तरफ देखता हूं तो मुझे बहुत बहुत gap नजर आता है और जब अपने खेत से खड़े होकर मत्रालय की तरफ देखता हूं तो मुझे सरकार नजर नही आती /

मेरा मानना है कि सन्सद दिनों दिन अपनी गरिमा खोती जा रही है / इसके लिये इस देश की जनता और देश की चुनाव प्रणाली जिम्मेदार है /

हमने साठ साल मे सन्सद के अन्दर राजनीतिक ईमानदारी खो दी है /