हेलो, क्या आप धन बल और बाहु बल से ग्रसित राज नीति देश के लिये अभिशाप है , इस पर अपने विचार बता सकते है….???
यह सवाल एक बहन ने किया है /
राजनीति अगर किसी दबाव में रहकर सम्पन्न की जाती है, तो फिर राज नीति मे स्वतन्त्रता कहां रह गयी ? यह तो प्रेशर पालिटिक्स हो गयी / जबकि राजनीति में जितने भी निर्णय लिये जाते है, उनके बारे में हमेशा ही यही मान्यता रही है कि जो भी निर्णय लिया जाय वह हर तरफ से दबाव मुक्त हों ताकि किसी भी कोण से कभी भी आन्कलन किया जावे या देखा जावे तो हर एन्गल से सम लगे और बराबर एक सा लगे ? राज्नीतिक निर्णय सन्तुलित लगे /
धन बल पर आश्रित राजनीति धन के दबाव की राज्नीति है / मसल पावर की राज्नीति गुन्डागर्दी और मार काट के भय की राज नीति है, दहशत की राज्नीति है / दोनो ही प्रकार अनुचित और बेजा दबाव बनाते है / यह सब किसके फायदे के लिये किया जाता है ? यह आदर्श राज नीति कहां रह गयी ?
इस तरह की राज नीति न तो देश के लिये शुभ है और न इस देश की जनता के लिये शुभ लक्षण है /
अफ्सोस की बात यह है कि आनेवाले दिनों में पन्चायत से लेकर लोक सभा तक यही दोनो वर्ग यानी “धन बल” और “बाहु बल” का वर्चस्व बढेगा और इसे कोई नहीं रोक पायेगा / चाहे कितने भी कानून बना दिये जांय, इनकी फसल हमेशा बढेगी /
इस तरह के बलियों को केवल जनता ही रोक सकती है / लेकिन इसकी उम्मीद मुझे बिल्कुल नही लगती, क्योन्कि इस मसले पर जनता खुद ही एक नहीं है /